वशिष्ठ योग फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट : 13 वां स्थापना दिवस ( प्राचीन सनातन योग को वास्तविक स्वरुप में आपतक पहुंचाने का आध्यात्मिक अभियान)
हमने सुन रखा है धर्मो रक्षति रक्षित: यानी हम धर्म की रक्षा करें , धर्म हमारी रक्षा करेगा। यहां धर्म का अर्थ किसी पूजा-पद्धति से नहीं, बल्कि जो कुछ भी हमारे जीवन में अपनाने योग्य है उसे धर्म कहा गया है। समझने के लिए शरीर को धर्म की तरह देखें, तो इस प्राचीन श्लोक को संदर्भ में कहेंगे कि आप शरीर की रक्षा करें, शरीर आपकी रक्षा करेगा। हम शराब, सिगरेट, फास्ट फूड , खराब जीवनशैली से शरीर धर्म को खतरे में डालते है तो फिर शरीर हमारे जीवन की रक्षा नहीं कर पाएगा। अब योग के संदर्भ में इसे समझें तो अर्थ आएगा आप योग की रक्षा करें, योग आपकी रक्षा करेगा। अब आपके जेहन में आएगा भला योग को किस चीज से ख़तरा है ? योग को भला कौन संकट में डाल रहा है ? योग तो खुद हमारी रक्षा करता है, भला रक्षक की रक्षा कोई करता है ! जैसे धर्म, सिस्टम, शरीर हमारी रक्षा करता है और इन सबकी हमें रक्षा करनी होती है, ठीक उसी तरह हम सबको रक्षित रखने वाले योग की हमे रक्षा करनी है।
क्या सचमुच योग ख़तरे में है ?
खतरे से हम तब बच पाते है, जब हमें खतरे की पहचान हो, या खतरे की बू आने लगे। अपने शुद्ध चैतन्य से जुड़ने के रूप में तंत्र और योग समांतर रूप से प्राचीन काल में विकसित हुआ। योग और योगी आज जिसतरह सम्मानपूर्वक घर-घर में विराजित है, वैसी स्थिति हम तंत्र या तांत्रिक की नहीं देखते। योग की तरह ना तो तंत्र की प्रैक्टिस हो रही है, ना योग के तल पर कहीं ट्रेनिंग संस्थान या आश्रम है, ना ही योगियों की तरह तांत्रिक सम्मान और घर बुलाने जैसे दिख पड़ते है। तंत्र को जीने वाले समय रहते इसके खतरे को भांप नहीं पाए, तंत्र के अंदर जो व्यवस्था की गड़बड़ी पैदा हो रही थी, उसके खिलाफ उठ खड़े नहीं हुए, परिणाम आज तंत्र संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है और उसकी वास्तविक विरासत कही खो गई । आज तंत्र महज कुछ धूर्त और तथाकथित काले जादू जैसे भ्रमजाल के हाथों फंसा बस आखिरी सांसें गिन रहा है।
जागरण देने वाले योग में बीयर वाली बेहोशी
योग में भी ये खतरा प्रकट हो गया है। हमें देखने की बस जरूरत है। हमें समझने की जरूरत है कि तंत्र की तरह ये खतरा बाहर से नहीं बल्कि अंदर से ही आया है। ऊपरी ऊपरी खतरे को आप देख पा रहे होंगे- जैसे Beer Yoga , Nude Yoga , Hot Yoga, Hip Hop Yoga जैसे अनगितन ट्रेंड जो योग के नाम पर हमारी प्राचीन विरासत व ऋषि मुनियों की सनातन परंपरा पर बड़ा खतरा बन उभरा है
परंपरा की जगह पश्चिमीकरण
ऊपर दिखने वाले इन खतरों से ज्यादा बड़ा खतरा वो है जिनका आपको एहसास नहीं। ये खतरा है योग के सिद्धांत व विज्ञान को एक किनारे रखकर मार्केट में अपना हिस्सा बड़ा करने की होड़ में आपकी सेहत व शांति से खिलवाड़। योग की सनातन परंपरा जिसमें बहुत बारीकि से तन-मन-भावना इत्यादि तलों के आधार पर योगाभ्यास व साधना को गढ़ा गया था, उसको ताक पर रखकर बस लुभावने उछलकूद में योग को ढाल दिया गया है। महर्षि पतंजलि ने योग साधना के आठ आयाम बताए जिसको अष्टांग योग कहते है और उनके सिद्धांत को उन्होंने योगसूत्र के रूप में पेश किया ताकि आनी वाली पीढ़ी इसके आधार पर सही प्रमाणिक योग कर सके और प्राचीन योग विज्ञान व चिकित्सा का लाभ ले पाए। एक-एक कर कुछ आयाम को आप यहां देखें कि कैसे महर्षि पतंजलि की परंपरा को ताक पर रख पश्चिमी नकल का डंका पीटा जा रहा है
स्थिरम् सुखम् की जगह उछलम कूदम
योग अभ्यास में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध आसन की बात करें तो महर्षि पतंजलि ने दो मुख्य सूत्र दिए :-
1. स्थिरं सुखं आसनं 2. प्रयत्न शैथिल्य
यानी आसन की असल पहचान ये है कि हमारी स्थिति स्थिर, सुखकर हो और आसन करने के वक्त किसी भी तरह का प्रयत्न या जबर्दस्ती नहीं करनी है। लेकिन आज आप टीवी से लेकर सोशल मीडियो में देख सकते हैं कि कैसे आसन के नाम पर उछलकूद मचाया जा रहा है, पतंजलि के नाम पर कैसे पश्चिमी एक्सरसाइज़ सिस्टम को योग के नाम पर बेचा जा रहा है।
ऊपर की तस्वीर देख कर मैं पतंजलि के अष्टांग योग में “Yogic Jogging Exercise” नाम का अंग तलाश रहा था, कहीं मिला नहीं, स्थिरता कैसे उछलकूद बन रहा है और कैसे हर जगह योग या यौगिक जोड़कर कुछ भी योग नाम से परोसा जा रहा है, उसकी ये एक बानगी भर है
आसन में सुख की जगह शिक्षक साधकों के साथ जबर्दस्ती और पीड़ा देने वाली स्थिति पैदा करते है( देखें-नीचे की तस्वीर, ये सब देख ऋषि मुनि कही रो रहें होंगे )। No Pain, No Gain की फर्जी बकवास के साथ आपके शरीर को बस सताया जा रहा है। कभी वैट लॉस के नाम पर तो कभी कैलोरी बर्निंग के नाम पर, जबकि योग का स्वभाव No Pain Big Gain का रहा है।
योग के नाम पर गूगल में ऐसी तस्वीरें अटी-पटी है। ये इतना कॉमन हो गया है कि तस्वीर लगाने वाले ना कोई सुध रखते और ना आप देखने वाले। महर्षि पतंजलि आज सामने आ जाएं तो सकते में पड़ जाएंगे कि कैसे उनके योगासन के सिद्धांत को ये महाशय लोग शीर्षासन करवाने पर तुले हुए है
चले वाते चलं चित्तं को अंगूठा
महर्षि पतंजलि, महर्षि वशिष्ठ जैसे कई प्राचीन गुरूओं ने प्राणायाम को लेकर बार बार कहा कि हमारी सांस का मन से गहरा संबंध है। गुस्से या डर की मनोस्थिति में हमारी सांस तेज़ हो जाती है, यानी मन में विकार आएगा तो सांस तेज़ चलेगी या यूं कहे कि सांस तेज़ होगी तो मन में विकार पैदा होगा। योग वशिष्ठ में गुरु भगवान वशिष्ठ रामजी को प्राणायाम की लंबी गहरी सांस की परंपरा को सीखाते नज़र आते है, लेकिन आज फास्ट फूड की कुसंस्कृति में प्राणायाम को भी दूषित कर दिया गया है। प्राणायाम के नाम पर बिना सिद्धांत व विज्ञान की परवाह किए फास्ट सांस लेने की विधि धड़ल्ले से एक के बाद एक नामचीन गुरु बता रहे है- कपालभाति, भस्त्रिका, कुदर्शन क्रिया और ना जाने कैसे कैसे फास्ट ब्रीदिंग की प्रणाली को जन-मानस में मार्केटिंग के जरिए माहौल बनाकर बेच दिया गया है। ऐसे में फास्ट सांसों का अभ्यास करने वाला साधक सूर्यनाड़ी की अधिकता से कई मानसिक रोग डिप्रेशन, चिंता, मनोविकार से ग्रसित हो रहा है, तन में कई तरह की व्याधियां-रोग अनजाने पैदा कर रहे हैं- चिड़चिड़ापन, उन्माद उनके दिमाग में घर कर गया है।
शिव के चंद्र की जगह सूर्य बढ़ाकर सेहत अस्त
शिवजी के सिर पर चंद्रमा, गुरू के दिन को गुरू पूर्णिमा, बुद्ध के दिवस को बुद्ध पूर्णिमा यानी जहां भी योगी दिखते है वहां चांद दिखता है, जो ठहराव व शीतलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों के बाद भी हम सूर्यनाड़ी बढ़ाने वालों के बहकावे में आ जाते है। ठहराव वाले योग की जगह हम दौड़ भाग वाले योग में खुद को लगा रहे हैं। जीवन की खटपट ऐसे ही हमें बहुत दौड़ा-भगा रहा है, हमारी ऊर्जा ले रहा है, ऐसे में ऋषि-मुनियों ने ठहराव की कला के रूप में योग को विकसित किया, मन ठहरे तो चैतन्य यानी आत्मतत्व की झलक मिले और जीवन का होना सफल हो। लेकिन आजकल फास्ट फूड जैसा मेडिटेशन भी चलन में है- ठहराव की जगह डायनेमिक मेडिटेशन बताया जा रहा है। यह गलत है। हमें यह भी समझना होगा कि बीमार होने पर अस्पताल भी कहता है कि ठहर जाओ, बेड रेस्ट करो। आराम करोगे तो ठीक हो जाओगे। हर जीव यही करता है। लेकिन फिटनेस ट्रेनर हमारी गति बढ़ा रहे हैं। ज्यादा गति होने से शरीर में सूर्य नाड़ी बढ़ जाती है। सूर्य नाड़ी को मेडिकल साइंस सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम (Sympathetic Nervous System) कहता है। हम जितनी तेज़ी दिखाएंगे, उतना ही यह सिस्टम ऐक्टिव होगा। इससे तनाव बना रहता है। इसका असर हमारे शरीर के अंगों पर पड़ता है। हार्ट या किडनी खराब हो जाती है, अपच रहती है और डायबीटिज़ हो सकती है। इसलिए तथाकथित योग या एक्सरसाइज़ ट्रेनर्स की बातों में न आएं।
प्राचीन सनातन योग है का संरक्षका वशिष्ठ योग
ख्याल रहे मार्केट के बहकावे में हम फंसे तो हमारा हाल माता सीता की तरह हो जाएगा जो सोने के हिरण को देखकर पीछे पड़ गई और खुद को राम से दूर कर लिया। स्वर्गमयी लंका के ये धन-कुबेर कई तरह के विज्ञापन की आड़ में, बड़े दावे और लुभावने बातों में आपको फंसाएंगे और आप रामरूपी निज सेहत व शांति से कोसो दूर हो जाएंगे। फिर ये अपना मनोरथ पूरा करेंगे, नकली योग से बीमार होने पर जड़ी बूटी की दुहाई देकर धंधा बढ़ाएंगे। सीताजी भी इनके साधु भेष में कपटी मिजाज को नहीं पकड़ पाई थी, आपका भी हरण ना हो जाए इसका आपको ही ध्यान रखना होगा।
जहां आज हर मठाधीश धन के सिंहासन पर सवार हो, मार्केट की मायाजाल बुनकर करोड़ों कमाने पर लगा है, वहां आपका योगगुरु धीरज इन छनिक लुभावनी चीजों से दूर सनातन प्राचीन योग को आपतक वास्तविक स्वरूप में पहुंचाने को लेकर कृतसंकल्पित है। एक ऐसे दौर में जहां खान-पान मिलावट व केमिकल से युक्त है, जहां हवा दूषित है, मन हर दिन थक और बोझिल हो रहा है, वहां आपको सिर्फ और सिर्फ प्राचीन वास्तविक योग ही बचा पाएंगा। इसी दिव्य उद्देश्य को ध्यान में रखकर 4 जुलाई 2011 को वशिष्ठ योग फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की गई है। ये किसी एक व्यक्ति या संस्था का कार्य नहीं है, ये कार्य हर उस व्यक्ति का है जो खुद को, आने वाली पीढ़ी को धन और रोग से ज्यादा बेहतर स्वास्थ्य, शांति, आध्यात्मिक उन्नति और ऋषियों की विरासत देना चाहता है। योग का नाम लेकर जोर-जोर से बात करने वाले बहुरूपिए कलयुगी कालनेमि को जानने और समझने की जरूरत है, वो हनुमान जी की तरह आपको बस फंसा देना चाहता है, ताकि उनका मनोरथ सिद्ध हो जाए। लेकिन जो रामजी के गुरू भगवान वशिष्ठ के मार्ग पर है उनका कल्याण तय है। वशिष्ठ योग आश्रम महज एक योग केंद्र नहीं बल्कि आपके जीवन की संजीवनी केंद्र है, हम सबके प्राचीन योग विरासत को बचाने की एकमात्र कोशिश है, हमारी सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक है।
थक हारकर फिर यहीं आना है
सही मार्गदर्शन और सभी तर्क के साथ अपनी बात रखने के बावजूद मार्केट का मायाजाल आपको फंसा लें तो चिंता की कोई बात नहीं। मेरा इंतजार जारी रहेगा, आप सब तरफ से थक हारकर , समय बर्बाद कर रामजी के गुरु वशिष्ठ के सिखाएं मार्ग पर ही आखिर आएंगे। ऐसे सैकड़ों लोगों के अनुभव है, जो पहले इन बातों को ध्यान नहीं दिएं, बाद में परेशानी बढ़ी और फिर वशिष्ठ योग से बेहतरी मिली।
प्राचीन गुरूओं के पुण्य से योगगुरू धीरज टीवी मीडिया की चकाचौंध वाली नौकरी से दूर आज सनातन योग के संरक्षक रूप में आपके बीच है। हजारों लोग आज असाध्य रोग से ठीक हुए है, लाखों लोग योगगुरू धीरज के योग शिक्षण को सीधे या सोशल मीडिया व अन्य साधनों से सीख लाभन्वित हो रहे हैं। जिस दिव्य उद्देश्य और संकल्प से वशिष्ठ योग की स्थापना हुए है उसमें आप भी अपना सहयोग दें। सही योग अपनाकर उपयोगी बनें, वशिष्ठ योगी बनें।
आप सभी योगगबली साधकों को वशिष्ठ योग स्थापना दिवस पर बहुत मंगलकामनाएं। रामजी के गुरु वशिष्ठ की कृपा हमसब पर बनी रहे और हम सभी मिलकर उनके ईश्वरीय कार्य में लग जीवन सफल करें। जब आखिरी में यही मंजिल है, यहीं तृप्ति है तो आज ही यहां डुबकी लगा लें, वशिष्ठ योग की सनातन योग धारा में नहा लें।
आगे का संकल्प
हमारा श्रम, वशिष्ठ योगाश्रम
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