प्राचीन योग वास्तविक स्वरुप में जानने की कला और विज्ञान – वशिष्ठ योग आश्रम
वशिष्ठ योग टीचर ट्रेनिंग सह जीवन रूपांतरण शिविर का दीक्षांत समारोह 24 दिसंबर को संपन्न हुआ। इस मौके पर करीब 19 साधकों को टीचर ट्रेनिंग सर्टिफिकेट, 20 को जीवन रूपांतरण शिविर भागीदारी सर्टिफिकेट तो अन्य 3 को दूसरे श्रेणी के सर्टिफिकेट योगगुरू धीरज के जरिए प्रदान किए गए। दीक्षांत समारोह के शुरुआती संबोधन में राष्ट्रीय संगठन प्रभारी योगी राजीव मिश्र ने साधकों को याद दिलाया कि ये सर्टिफिकेट कोर्स प्राचीन सनातन योग को फिर से उसके वास्तविक स्वरुप में स्थापित करने के उद्देश्य से शुरु किया गया है। इस दिव्य लक्ष्य को ध्यान में रख हर साल कई साधकों को 15 दिवसीय आवासीय शिविर में योगासन-प्राणायाम-ध्यान , योग टीचिंग स्किल, योग चिकित्सा विज्ञान व दूसरे थ्योरिटिकल जानकारी वशिष्ठ योगाश्रम के जरिए प्रदान की जाती है।
देश के विभिन्न प्रांतों से आए कई साधकों ने इस मौके पर अपने अनुभव शेयर किए। साधकों ने अनुभव किया कि योग को गलत तरीके से करने की वजह से उन्हें कई सालों के अभ्यास के बावजूद बेहतर रिजल्ट नहीं मिले, लेकिन शिविर के दौरान योगासन प्राणायाम का सही तरीका, योग अभ्यास क्रम और नियमित अभ्यास से शरीर का लचीलापन बढ़ने के साथ तन-मन का काफी कायाकल्प हुआ। विभिन्न साधकों ने कई दूसरी समस्या में बेहतरी के अनुभव वशिष्ठ योग शिविर के दौरान किए।
दीक्षांत समारोह के अपने संबोधन में योगगुरू धीरज ने बताया कि अगर योग अपनी वास्तविक स्वरुप में प्रकट हो तो घर-घर बीमारी व लाचारी की जगह सुंदर सेहत व शांत जीवन का प्रकटीकरण होगा। उन्होंने साधकों को आगाह किया कि इनदिनों योग में पश्चिमी एक्सरसाइज़ की मिलावट है और हमें उसमें सनातन ऋषियों की साधना की सजावट फिर से स्थापित करते रहना है। भावी योग शिक्षकों को मार्गदर्शन देते हुए योगगुरु धीरज ने कहा कि कुछ पैसे व करियर आगे बढ़ाने के लालच में हमें अधिकार नहीं लोगों के जीवन व योग के साथ छेड़छाड़ करने का।
योगगुरू धीरज ने एक साधिका के सवाल पर जवाब देते हुए साफ किया कि आधुनिक समय में योग के नाम पर दी गई गलत सीख को सही करना किसी की निंदा या बुराई नहीं बल्कि लोकहित में सुधार कार्यक्रम को सुनिश्चित करना है। द्रौपदी चीरहरण में जैसे कई महारथी इसलिए चुप रह गए क्योंकि उन्हें लगता था ऐसे करने से उनके सामर्थ्यशाली युवराज दुर्योधन की बुराई हो जाएगी, ठीक ऐसे ही योग की गलत सीख पर अंगुली इसलिए नहीं उठानी कि कुछ व्यक्ति व संस्था पर सवाल ना उठ जाए, ये मानसिकता योग व करोड़ों लोगों के हित के खिलाफ होगा। योगेश्वर कृष्ण कि चिंता इससे अलग थी और वो नहीं चाहते थे कि युवराज दुर्योधन के जरिए द्रौपदी का चीरहरण आने वाले समाज के लिए एक गलत उदाहरण बनके प्रस्तुत हो। श्रीकृष्ण ने धर्मयुद्ध के जरिए सनातन मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया। इसी तरह वर्तमान में योग के चीरहरण को, उसमें पश्चिमी एक्सरसाइज उछलकूद के मिलावट के खिलाफ अभियान चलाने की जरुरत है। योग के नाम पर हॉट योग, बीयर योग और उछलकूद हम सनातनी लोग स्वीकार ना करें और योग धर्मक्षेत्र के जरिए प्राचीन वास्तविक योग को जनहित में फिर से स्थापित करें। उन्होंने कहा कि तंत्र की तरह योग को भी कुछ लोग अपने स्वार्थ में अनजाने तबाह कर रहे हैं , हमे सजगता से सनातन संस्था का वशिष्ठ योग के बैनर तले संरक्षण करने का संकल्प दोहराते रहना है, वरना वो दिन दूर नहीं जब तंत्र की तरह योग का वास्तविक स्वरुप नष्ट हो जाएगा या फिर गलत योग को ही सही समझ अपनाते रहना होगा। जागरण ही योग की शिक्षा है और योग का संरक्षण भी