Interview with Yog Guru Dheeraj with Navbharat Times News Group
हम जो योग करते है क्या वह योग के सिद्धांतों के उलट है? क्या आजकल आसन-प्राणायाम का तरीका बदल गया है ? हमें योग में ठहराव की ज़रूरत क्यों है, ऐसे ही सवालों की जवाब तलाशने के लिए वशिष्ठ योगाश्रम के संस्थापक योगगुरु धीरज से नवभारत टाइम्स की रजनी शर्मा ने की यह खास बातचीत:
आजकल सबको कम वक्त में ज्यादा फिट होना है। पर आप कहते हैं कि ज़िंदगी को ठहराव दें, फिर कैसे होगा ?
इन दिनों हर गतिशील शख्स परेशान है। एक कथा है जिसमें डाकू अंगुलिमाल को 108 अंगुलियों की माला बनाने का टारगेट पूरा करना था तो वह जल्दबाज़ी में था। वह गौतम बुद्ध से कहता है, ‘ठहर जाओ’। बुद्ध कहते हैं, ‘मैं तो ठहरा हुआ
हूं , तुम कब ठहरोगे ‘ इस बात को योग के संदर्भ में समझ सकते हैं कि चाहे आसन, प्राणायाम या ध्यान हो, ये सब हमारे अंदर ठहराव लाते हैं। योगासन वह
है जि समें थोड़ा-सा मूवमेंट होता है और फिर ज्यादा ठहराव।
पतंजलि ऋषि ने इसके लिए ही कहा है ‘स्थिरम् सुखम् आसनम्’, इसमें ठहरना यानी स्थिर होना है और सुखम यानी वह ठहराव जो सुख दे, लेकिन आज हमें कहीं न कहीं पहुंचने की जल्दी रहती है। हम तो अपने मोबाइल
फोन को भी स्थिर होकर नहीं देखते, एक से दूसरे ऐप में दौड़ात रहते है। जब बैटरी खत्म होती है तो उसे रिचार्ज करते हैं लेकिन खुद को चार्ज करते हैं ? क्या आपने कभी सोचा है कि सुबह अगर हम रनिंग करते हैं, जिम जाते हैं और हेवी एक्सरसाइज़ करके आते हैं तो ऐसे में हम खुद को रिचार्ज नहीं करते, अपनी बैटरी ही खर्च कर आते हैं। योग हमें रिचार्ज करता है और ऊर्जावान बनाता है। योग के सभी अंग चाहे आसन, प्राणायाम, ध्यान, यौगिक विश्राम हो- वे तन-मन के तनाव को कम कर, ऑक्सिजन की
आपूर्ति बढ़ाकर हमें पहले से कही ज्यादा तरोताज़ा करते है, ऊर्जा वान बनाते है। शवासन, योगनिद्रा ठहराव ही है।
आप गौर करें कि जब हम सोकर उठते हैं तो तरोताज़ा होते हैं क्योंकि रातभर हम ठहरे हुए थे। ऋषियों ने सोचा कि जब हम सोकर नए हो जाते हैं तो तरोताज़ा रहने के लिए हर वक्त तो सो नहीं सकते ऐसे में आसन, प्राणायाम की विधियां तैयार की गईं।
आप यह क्यों कहते हैं कि योगासन भी फास्ट फूड जैसा हो गया है?
दुर्भाग्य से हमने फास्ट लाइफस्टाइल अपना लिया है। इसी वजह से योग के सिद्धांतों के उलट दूसरे देशों में की जानेवाली एक्सरसाइज़ को भी योगासन में शामिल करा दिया। आसन अब डायनेमिक मूवमेंट हो गया है, वहां ठहराव नहीं रहा। उसे ‘पावर योगा’ कहा जा रहा है। वह ऋषि पतंजलि के नियमों के उलट ‘उछलम- कूदम’ हो गया है। नुकसान यह हो रहा है कि ऐसा योग
या एक्सरसाइज़ करने वाला शख्स खुद को हर वक्त थका हुआ महसूस करता है। लोग डिप्रेशन में जा रहे हैं क्योंकि हर वक्त उन्हें काम का बोझ सताता रहता
है। असल में उन्होंने खुद को रिचार्ज तो किया ही नहीं, सिर्फ थका लिया है। सिर्फ आसन नहीं, प्राणायाम में भी
फास्ट क्रियाएं जोड़ दी गई जैसे भस्त्रिका और कपालभाति जिसमें सांसों की गति तेज होती है। असल में यह प्राणायाम नहीृं है। यह योग के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है। अगर कोई रात को सोने की जगह हमें डायनेमिक स्लीप (सोते हुए खूब उछलना-कूद ना) कराए तो क्या
हम सो पाएंगे? अगर हम स्थिर नहीं होंगे और शरीर व मन को कम्प्यूटर की तरह शटडाउन नहीं करेंगे तो नींद कैसे आएगी? कुछ लोग कहते हैं कि शरीर को सोने से पहले खूब थका लो तो अच्छी नींद आएगी। लोग रात को टेनिस खेलने लगते हैं कि शरीर थक जाएगा तो सोएगा लेकिन इसके उलट होता है। हमारा नर्वस सिस्टम ऐक्टिव हो जाता है, फि र नींद खराब हो जाती है। असल में जहां भी फास्ट शब्द जुड़ जाता है वह हमें नुकसान करता है। फास्ट फूड यानी वह खाना जो जल्दी -जल्दी पकाया गया है। लोग सांसों को तेज़-तेज़ चलाने के लि ए कहते हैं तो निश्चित रूप से यह हमारे
लिए नुकसानदायक है। कई बार तो अस्थमा के मरीज़ को कपालभाति सिखा दिया जाता है। सोचकर देखें कि
जो व्यक्ति सामान्य रूप से सांस नहीं ले पा रहा, वह जल्दी -जल्दी सांस कैसे लेगा? जो सामान्य रूप से चल
नहीं पाता, उसे हम दौड़ा देंगे तो बीमार हो जाएगा। दिल के मरीज़ को कपालभाति कराएंगे तो उसकी बीमारी बढ़ जाएगी। योग हमें दरुुस्त करता है पर उसमें मिलावट की वजह से नुकसान होता है। हमें दिन के बाद रात की
ज़रूरत होती है, फिर से दिन की नहीं। हमें हर दिन स्लो होना होगा। यह स्लो डाउन प्रोसेस चलता रहना चाहिए।
ठहराव की प्रैक्टिस होनी चाहिए।
वज़न घटाने के लिए लोग फास्ट एक्सरसाइज़ करते है, उनके लिए क्या विकल्प है?
अगर हमें सेहतमंद रहना है तो फास्ट चीज़ों से दूर रहना होगा। फास्ट चलना, फास्ट दौड़ना, फास्ट फूड खाना, फास्ट लाइफस्टाइल नहीं चलेगी। योग की
रिलैक्सेशन तकनीक अपनानी होगी। रिलैक्स रहेंगे तो मेटाबॉलिज़म ठीक रहेगा। मेटाबॉलिज़म ठीक होने से
वज़न धीरे-धीरे कम हो जाएगा। यह बहुत जल्दी नहीं होगा। महीने में 1 या 2 किलो तक वज़न घट जाए तो ठीक है। उससे ज्यादा वज़न अचानक घटना हमारे
शरीर के अंगों के लिए ठीक नहीं है। योग करते हुए जल्दबाज़ी बिलकुल न करें। आजकल फास्ट फूड जैसा मेडिटेशन भी चलन में है। यह गलत है। हमें यह भी समझना होगा कि बीमार होने पर अस्पताल भी कहता है कि ठहर जाओ, बेड रेस्ट करो। आराम करोगे तो ठीक हो जाओगे। हर जीव यही करता है, लेकिन
फिटनेस ट्रेनर हमारी गति बढ़ा रहे हैं। ज्यादा गति होने से शरीर में सूर्य नाड़ी बढ़ जाती है। सूर्य नाड़ी को मेडिकल साइंस सिम्पैथेटिक नर्वस सिॉस्टम
(Sympathetic Nervous System) कहता है। हम जितनी तेज़ी दिखाएंगे, उतना ही यह सिस्टम ऐक्टिव होगा। इससे तनाव बना रहता है। इसका असर हमारे शरीर के अंगों पर पड़ता है। हार्ट या किडनी खराब हो जाती है, अपच रहती है और डायबीटिज़ हो सकती है।
इसलिए तथाकथित योग या एक्सरसाइज़ ट्रेनर्स की बातों में न आएं। कोई कहता है कि 108 सूर्य नमस्कार कर लो, जल्दी से पतले हो जाओगे तो यह बिलकुल गलत है। हम मोटे शख्स को दौड़ा देते हैं, यह भी पता होना चाहिए कि दौड़ने पर हमारे घुटनों पर करीब 4 गुना
ज्यादा वज़न पड़ता है। अगर कोई 80 किलो का शख्स है तो उसके जोड़ों पर करीब 300 कि लो वज़न आने लगेगा। ऐसे मेें उसके घुटने जल्दी खराब होेंगे। वज़न घटे न घटे, बीमार ज़रूर पड़ सकते हैं। आखिर मेे सब कुछ छोड़कर वह घुटनों के इलाज में जुट जाता है। अब
इसका मतलब यह नहीं है कि हमें सुस्त रहना है या लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहना है। वैसे सब कुछ फास्ट करने की आदत का लोगों की सेक्शुअल लाइफ पर भी असर पड़ रहा है, वहां भी तो ठहराव चाहिए।
योगासन करते हुए कितना ठहरना चाहिए ?
जब भी कोई आसन करें तो सहजता से उसमें जितना ठहर सकें, उतना ही ठहरे, अभ्यास बढगें तो ज्यादा ठहरने लगेंगे। पहले दिन ही लंबा अभ्यास नहीं
करना। योग करते हुए छोटे बच्चों के बारे में सोचें। चलना शुरू करने से पहले बच्चे खड़ा होना सीखते हैं। जब वे
खड़े होते हैं तो शुरुआत में कुछ सेकेंड में ही गिर जाते हैं, फिर धीरे-धीरे चलना सीख जाते हैं। आसन को जल्दबाजी
में और गिनती के लिए न करें । वहीं, प्राणायाम करते हएु गहरी सांस लेे, उसमें ठहराव लाएं। धीरे-धीरे 4 सेकंड और फिर 16-20 सेकंड तक उसमें ठहर सकते हैं। गहरी सांस के उदाहरण- उज्जायी, वशिष्ठ प्राणायाम हैं। इसके अलावा अनुलोम-विलोम करें। ओमकार स्वर के साथ करें या भ्रामरी भी कर सकते हैं। जहां तक मेडिटेशन की बात है तो वह घटित होता है। यह इसी तरह है कि जबं
हम आंख बंद करके लेटते हैं तो नींद घटित हो जाती है। क्लासिकल संगीत की तरह क्लासिक योग का पालन
करेंगे तो शांति मिलेगी। हिपहॉप यानी फास्ट योग करेंगे तो सिरदर्द मिलेगा। शुरुआत में मैंने बुद्ध की बात की थी। वह
संदेश हमारे लिए भी है लेकिन हम नहीं सुन रहे।