प्राचीन समय में जब चिकित्सा के दूसरे पुख्ता इंतजाम नहीं थे, वैद्य या डॉक्टर या फिर चिकित्सालय व अस्पताल नहीं थे तब भी लोग योग के जरिए ज्यादा सेहतमंद व शांत थे। सनातन के ऋषियों-मुनियों ने उन पद्धति को तपबल से तलाश लिया था जिससे तन-मन का कायाकल्प तो होता ही था, दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों को भी संजो कर रख पाते थे। ऋषियों ने पाया कि मानव कई प्राकृतिक व दूसरे किस्म के आघातों को झेलता रहा है और इन परेशानियों से गुजर कर शरीर ने जाना है कि खुद को कैसे स्वस्थ व शांत रखा जा सकता है। इन्हीं अनुभूतियों के आधार पर सनातन के योग का सृजन हुआ।
प्राचीन समय में जब चिकित्सा के दूसरे पुख्ता इंतजाम नहीं थे, वैद्य या डॉक्टर या फिर चिकित्सालय व अस्पताल नहीं थे तब भी लोग योग के जरिए ज्यादा सेहतमंद व शांत थे। सनातन के ऋषियों-मुनियों ने उन पद्धति को तपबल से तलाश लिया था जिससे तन-मन का कायाकल्प तो होता ही था, दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों को भी संजो कर रख पाते थे। ऋषियों ने पाया कि मानव कई प्राकृतिक व दूसरे किस्म के आघातों को झेलता रहा है और इन परेशानियों से गुजर कर शरीर ने जाना है कि खुद को कैसे स्वस्थ व शांत रखा जा सकता है। इन्हीं अनुभूतियों के आधार पर सनातन के योग का सृजन हुआ।
प्राचीन समय में जब चिकित्सा के दूसरे पुख्ता इंतजाम नहीं थे, वैद्य या डॉक्टर या फिर चिकित्सालय व अस्पताल नहीं थे तब भी लोग योग के जरिए ज्यादा सेहतमंद व शांत थे। सनातन के ऋषियों-मुनियों ने उन पद्धति को तपबल से तलाश लिया था जिससे तन-मन का कायाकल्प तो होता ही था, दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों को भी संजो कर रख पाते थे। ऋषियों ने पाया कि मानव कई प्राकृतिक व दूसरे किस्म के आघातों को झेलता रहा है और इन परेशानियों से गुजर कर शरीर ने जाना है कि खुद को कैसे स्वस्थ व शांत रखा जा सकता है। इन्हीं अनुभूतियों के आधार पर सनातन के योग का सृजन हुआ।
वशिष्ठ योग टीचर ट्रेनिंग सह जीवन रूपांतरण शिविर का दीक्षांत समारोह 24 दिसंबर को संपन्न हुआ। इस मौके पर करीब 19 साधकों को टीचर ट्रेनिंग सर्टिफिकेट, 20 को जीवन रूपांतरण शिविर भागीदारी सर्टिफिकेट तो अन्य 3 को दूसरे श्रेणी के सर्टिफिकेट योगगुरू धीरज के जरिए प्रदान किए गए।
प्राणायाम दो शब्दों से बना है- प्राण और आयाम । प्राण महज सांस नहीं है । प्राण हमारे अंदर मौजूद सबसे सूक्ष्म और महत्वपूर्ण व्यवस्था है । आयाम का तात्पर्य विस्तार से है । यानी प्राणायाम वो साधना है जिसके जरिए हम अपने अंदर मौजूद सारभौमिक ऊर्जा का विस्तार करते हैं ।