वशिष्ठ योगाश्रम : प्राचीन योग से कायाकल्प
वशिष्ठ योगाश्रम अहमदाबाद गुजरात में स्थित है। वशिष्ठ योग फॉण्डेशन रजिस्टर्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत आश्रम प्राचीन योग को अपने वास्तविक स्वरुप में प्रकट करने को लेकर संकल्पित है। कभी टीवी जर्नलिस्ट रहे योगगुरू धीरज वशिष्ठ योग के संस्थापक गुरू है। आखिर कैसे आया अस्तित्व में वशिष्ठ योग ? वशिष्ठ योग के पीछे की क्या थी प्ररेणा ? आखिर वो कौन से हालात थे जिसने टीवी की चमचमाती दुनिया के एक शख्स को प्राचीन योग की ओर ना सिर्फ उत्सुक किया बल्कि रूपांतरण की कड़ी बनाई ? खुद आप पढ़ें आज योगगुरू धीरज की जुबानी वशिष्ठ योग की कहानी
यह बात 2009 की है। न्यूज़ रुम की चमकती लाइट हर तरफ फैली हुई थी। रात्रि के आखिरी प्रहर में की-बोर्ड की ‘कट-कट, कट-कट’ चलने की आवाज़ आ रही थी । न्यूज़ रूम के अंडाकार एरिया में मैं सुबह के बुलेटिन के रनडाउन को लेकर सोचनीय मुद्रा में था। मुझे नाइट शिफ्ट पसंद नहीं था, लेकिन इसबार मैंने खुद उसकी पैरवी की थी। रनडाउन प्रोड्यूसर को दिन की भागती-हांफती खबरों की तुलना में रात्रि में सुकून रहता है।लेकिन हर दिन जैसे एक रुटीन बन गई थी जिंदगी। न्यूज़ इंडस्ट्री में सबकुछ था,लेकिन जीवन अपनी त्वरा में जैसे प्रकट नहीं हो रहा था। नियति जैसे कहीं ओर ले जाना चाहती थी ।
अप्रैल, 2005 में आईआईएमसी से टीवी-रेडियो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद कभी सोचा नहीं था कि मेरे अंदर का पत्रकार, योग की दुनिया हिस्सा बनने जा रहा है। एक दिन अचानक मुझे दिल्ली के एक योग स्टूडियो में जाने का मौका मिला। वहाँ का बेसिक क्लास का कोर्स सप्ताह में तीन दिनों का था। जब मैं घर आता तो लगता कि अंदर की कुछ और भी पुकार है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था। इस पुकार ने मुझे एक दिन योग वशिष्ठ ग्रंथ की तरफ मोड़ दिया। मुझे लगा जीवन में कितना कुछ जीने जैसा है, जिसे छोड़ मैं भटकता रहा। हर दिन दो चीजें साथ-साथ चल रही थी- साधना और योग वशिष्ठ का स्वाध्याय। आगे मानो स्वयं गुरु वशिष्ठ साक्षात दिव्य ज्ञान को खोल रहें थे, मैं भाव-भिवोर था। एक ओर जहाँ प्राचीनसनातन ज्ञान दिव्यता की अनुभूति करा रहा था, दूसरी ओर ऐसा स्पष्ट दिख रहा था योग के नाम पर दावों का मायाजाल बुना जा रहा है। ऐसा लगा कि कहीं योग का तंत्र जैसा हाल तो नहीं हो जाएगा ?
तनूदेशे शून्यतैव क्षणमात्रं विभावयेत् ।
निर्विकल्पं निर्विकल्पो निर्विकल्पस्वरूपभाक् ॥
यदि कोई शरीर को शून्य के रूप में, एक क्षण के लिए भी, मन को विचार से मुक्त करके एकाग्र करता है, तो व्यक्ति विचारहीनता को प्राप्त कर लेता है और वास्तविक रूप से शून्य (आत्मतत्व या चैतन्य) का रूप धारण कर लेता है
– विज्ञान भैरव तंत्र – श्लोक 46
इस श्लोक में तंत्र की श्रेष्ठतम साधना की सुगंध है । इसके भाव में योग के प्राचीन दर्शन व अभ्यास साधना दोनों की झलक है । लेकिन तंत्र संदेहास्पद बन गया और तांत्रिक उपहास का शब्द।
मौजूदा वक्त में योग बहुत ज्यादा ही प्रसिद्ध हो रहा है। लेकिन जो योग आज फैल रहा है उसमें ऋषि-मुनियों की परंपरा कम पश्चिमी देशों के वर्कआउट, महज शरीर की कैलोरी ऊर्जा को जलाने और वजन घटाने वाली प्रणाली के रूप में प्रकट हो रहा है।
योग का पूरा दर्शन इस दौड़ में बिखरता-टूटता और कहीं सिसकता दिखाई दे रहा है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं रहा।कई लोग योग की इन नई मिलावट के ख़तरे को देख पा रहें हैं, लेकिन कोई कुछ कर नहीं रहा! पतंजलि के योगसूत्र को तोते की तरह रट लेने वाली हमारी क्षमता, पतंजलि को जीने की तत्परता में नहीं बदल पा रही! योग अगर घर-घर पहुंच ही गया तो जीवन की सामान्य शारीरिक-मानसिक परेशानियों में
हम क्यों फंसे दिख रहें हैं?
ऐसे अनगिनत सवाल साथ-साथ चल रहे थे। मुझे एक दिन उनके जवाब मिल गए। हर दिन रात्रि में सोने से पहले मैं गीता का पाँच श्लोक पढ़ लिया करता था। उस दिन के श्लोक में श्रीकृष्ण स्वयं मेरे सवाल का जवाब देने मानो मेरे सामने थे:
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप
हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु बहुत काल बीतने के बाद वह योग- परम्परा (पृथ्वी से) लुप्त हो गयी
– गीता 4.2
गीता में श्रीकृष्ण भी यही बता रहे हैं कि परंपरा से आया ये योग लुप्त हो जाता हैऔर उसे फिर दोबारा गढ़ने की जरुरत होती है, प्रस्तुत करने की ज़रूरत होती है।
मौजूदा वक्त में भी योग का नाम तो है,लेकिन उसका सार कहीं लुप्त हो गया है। इसलिए सनातन योग को फिर से प्रकट करने के संकल्प के साथ मैंने वशिष्ठ योग फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना 4 जुलाई 2011 को की। वशिष्ठ योगाश्रम इस कड़ी को नित्य आगे बढ़ाते हुए लगनशील है। इसी बीच हमने कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर भी योग के प्रति वास्तविक जागरुकता को बढ़ाने के लिए योगगुरु धीरज चैनल की शुरुआत ही की। उस चैनल के सब्सक्राइबर्स की संख्या अब 10 लाख से भी ज्यादा पहुँच गई है।
प्राचीन वास्तविक योग को घर-घर,गली-गली तक पहुंचाने की ये दिव्य योगबली मुहिम आज हर तरफ अपना असर दिखा रही है। सत्य के वृक्ष को पनपने में वक्त जरूर लगता है लेकिन उसकी जड़ें बहुत गहरी होती है। वशिष्ठ योगाश्रम व योगगुरू धीरज जिस प्राचीन योग को फिर से आधुनिक युग में स्थापित कर रहें है वो संजीवनी बन युगों युगों तक मानवता के कल्याण के लिए अग्रसर है। आप भी वशिष्ठमय बनें, योगबली बनें। जीवन दुख के लिए नहीं, उत्सव के लिए है और आनंदमय उत्सव की तैयारी का नाम है वशिष्ठ योग